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यदि मैं पाप करूँ, तो क्या मैं फिर भी स्वर्ग जाऊँगा?

इसके बारे में कई विषय हैं जिनके ऊपर विचार विमर्श किया जाना चाहिए।

आत्म-संयम आत्मा का फल है

(गलातियों 5:22) – जब पवित्रात्मा हमारे जीवनों का मार्गदर्शन देने के लिए निर्देश देता और हमें परिवर्तित करता है, तो यह उसकी मंशा है कि हम आत्म-संयम का निर्माण करें। यीशु के जैसे बनने के लिए बाइबल में “पवित्रीकरण” का विवरण दिया गया है – जो कि एक वृद्धि करता हुआ परिवर्तन है, जिसमें परमेश्वर हमारे जीवनों में पवित्रता और उसके चरित्र का निर्माण करता है।

प्रत्येक विश्वास पाप के साथ संघर्ष करता है,

और पाप जिसने हमारे ध्यान को अपनी ओर खींचा हुआ है समय के साथ परिवर्तित होता जाएगा। यह महत्वपूर्ण है कि हम हमारे जीवनों में परमेश्वर को हमारे पाप दिखाने दें, और उसे हमें उसके तरीकों और उसके समयों के अनुसार परिवर्तन करने दें। यदि हम किसी एक पाप का निपटारा स्वयं के द्वारा करने का प्रयास करेंगे और उस पर स्वयं-के-प्रयास के द्वारा विजय होने का प्रयत्न करेंगे, तो हमारे लिए असफल हो जाना सम्भव है। यह परमेश्वर ही है जो परिवर्तन को निर्धारित करता है…परमेश्वर इसकी अपेक्षा हमारे ध्यान को उसके और उसकी सामर्थ्य के ऊपर केन्द्रित करेगा। वह चाहता है कि हम परिवर्तन के लिए उसके ऊपर ध्यान को केन्द्रित करें, इसकी अपेक्षा कि हम स्वयं के ऊपर भरोसा करें।

पौलुस ने लोभ के साथ संघर्ष किया था,

और इसका विवरण रोमियों 7 में दिया है। जितना अधिक उसने व्यवस्था को पालन करने का प्रयास किया, उतना ही अधिक व्यवस्था ने उस पर दोष लगा दिया, क्योंकि वह इसका पालन नहीं कर पाया था। उसका निष्कर्ष क्या था? जब वह यह कहता है कि, “कौन मुझे इस मृत्यु की देह से छुड़ाएगा?” उसका उत्तर यह था, “यीशु” और वह इसके बारे में रोमियों 8 में व्याख्या देता चला जाता है।

अन्य वचन भी सहायतापूर्ण हो सकते हैं:

1 यूहन्ना 1:7-2:2 –इसमें से कुछ अंश यहाँ दिए गए हैं: “यदि हम कहें कि हम में कुछ भी पाप नहीं, तो अपने आप को धोखा देते हैं, और हम में सत्य नहीं। यदि हम अपने पापों को मान लें, तो वह हमारे पापों को क्षमा करने और हमें सब अधर्म से शुद्ध करने में विश्वासयोग्य और धर्मी है… हे मेरे बालको, मैं ये बातें तुम्हें इसलिये लिखता हूँ कि तुम पाप न करो; और यदि कोई पाप करे तो पिता के पास हमारा एक सहायक है, अर्थात् धर्मी यीशु मसीह; और वही हमारे पापों का प्रायश्चित है…।”

कोई भी जो एक विश्वासी है एक सिद्ध, परमेश्वर को पूर्ण प्रसन्न करने वाले जीवन को नहीं जीता है। परन्तु हमें परमेश्वर के द्वारा हमारे बदले में यीशु की मृत्यु के कारण स्वीकार किया गया, और हमें क्षमा कर दिया गया है और परमेश्वर की आँखों में यीशु की धार्मिकता के कारण धर्मी ठहरा दिया गया है।

रोमियों 3:20-26 - “क्योंकि व्यवस्था के कामों से कोई प्राणी उसके सामने धर्मी नहीं ठहरेगा, इसलिये कि व्यवस्था के द्वारा पाप की पहिचान होती है।पर अब व्यवस्था से अलग परमेश्वर की वह धार्मिकता प्रगट हुई है, जिस की गवाही व्यवस्था और भविष्यद्वक्ता देते हैं, अर्थात् परमेश्वर की वह धार्मिकता, जो यीशु मसीह पर विश्वास करने से सब विश्वास करनेवालों के लिये है। क्योंकि कुछ भेद नहीं; इसलिये कि सब ने पाप किया है और परमेश्वर की महिमा से रहित हैं, परन्तु उसके अनुग्रह से उस छुटकारे के द्वारा जो मसीह यीशु में है, सेंत मेंत धर्मी ठहराए जाते हैं। उसे परमेश्वर ने उसके लोहू के कारण एक ऐसा प्रायश्चित्त ठहराया, जो विश्वास करने से कार्यकारी होता है, कि जो पाप पहले किए गए, और जिन पर परमेश्वर ने अपनी सहनशीलता के कारण ध्यान नहीं दिया। उनके विषय में वह अपनी धार्मिकता प्रगट करे। वरन् इसी समय उसकी धार्मिकता प्रगट हो कि जिससे वह आप ही धर्मी ठहरे, और जो यीशु पर विश्वास करे, उसका भी धर्मी ठहरानेवाला हो।”

परमेश्वर कहता है कि हम अब आदर्शों के ऊपर आधारित व्यवस्था (परमेश्वर की मांग और अपेक्षाएँ) के अधीन नहीं हैं। इसकी अपेक्षा, हम अनुग्रह के अधीन हैं, क्योंकि यीशु ने व्यवस्था की मांग को पूरा कर दिया है, और उसके अनुग्रह के द्वारा हमारा उसकी संगति में स्वागत किया गया है।

अनन्त जीवन का आधार यीशु में विश्वास करना है, न कि पाप के ऊपर विजय प्राप्त करने की हमारी योग्यता। यीशु पाप के कारण क्रूस के ऊपर हमारे लिये मर गया। वह हमें जो कुछ उसने किया है उसके आधार पर क्षमा का प्रस्ताव देता है। वह हमे उसके सामने धार्मिकता, परमेश्वर की सन्तान के रूप में स्वीकार किए जाने का प्रस्ताव देता है क्योंकि वह हमारे लिए उद्धार को लाया है।

हमारा ध्यान अब उसका वचन, हमारे जीवनों के निर्माण की मांग करना जिसे हम बाइबल में देखते हुए, जिसे हम में करने के लिए हम उसके ऊपर निर्भर होते हैं। हताश न हो जाएँ परन्तु उसमें भरोसा करें, परिवर्तन के लिए निरन्तर उसकी योग्यता में टिके रहें और वह आपको पाप से स्वतन्त्र कर देगा। उसकी आज्ञापालन कीजिए जब वह आपके लिए परीक्षा से बचने के लिए तरीके का प्रबन्ध करता है – बचने के लिए उस तरीके को ले लें (1 कुरिन्थियों 10:13), परन्तु यह जाने कि परिवर्तन करने वाली सामर्थ्य उससे सम्बन्धित हैं, न कि हमसे।