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अपने विश्वास को बाँटना

मैं प्रार्थना करता हूँ कि विश्वास में तेरा सहभागी होना, तुम्हारी सारी भलाई की पहचान में, मसीह के लिये प्रभावशाली हो। - फिलेमोन - वचन 6

एक मसीही विश्‍वासी बन जाने के पश्चात्, सबसे बड़ा काम आप किसी अन्य व्यक्ति को मसीह को जानने में सहायता करने के द्वारा कर सकते हैं। जैसा कि आप को स्मरण होगा कि मसीह के बिना आपका जीवन कैसा था, तरस आपको अपने विश्‍वास को बाँटने के लिए प्रेरित करे। रोमियों 10:13, 14 कहता है कि, “जो कोई प्रभु का नाम लेगा, वह उद्धार पाएगा। फिर जिस पर उन्होंने विश्‍वास नहीं कि वे उसका नाम कैसे लें? और जिसके विषय सुना नहीं उस पर कैसे विश्‍वास करें? और प्रचारक बिना कैसे सुनें?”

परन्तु आप क्या कहते हैं, और कहाँ से आरम्भ करते हैं? सुसमाचार की विषय-वस्तु को सीखने और पृष्ठभूमि के संदर्भ जिस में आप उसे सम्प्रेषित कर रहे हैं, आपको इसे और अधिक प्रभावशाली तरीके से बाँटने में अनुमति देता है।

सुसमाचार को स्पष्टता से कहना

अब आप यीशु मसीह के बारे में लोगों को क्या कहते हैं?

1. परमेश्‍वर उन्हें प्रेम करता है – हम में से प्रत्येक प्रेम और सार्थकता की खोज करते हैं। बाइबल हमें शिक्षा देती है कि हम यहाँ पर संयोग से नहीं हैं। शक्तिशाली के जीवित बने रहने से बढ़कर जीवन का बहुत अधिक महत्व है। कोई हमारी बड़ी गहनता से, प्रेम से देखभाल करता है और हमारी मौन चिल्लाहट को सहायता देने के लिए समझता है। हो सकता है कि ये वचन सहायतापूर्ण रहे हों जब आप परमेश्‍वर के प्रेम को सम्प्रेषित करते हैं: यूहन्ना 3:16; रोमियों 5:8; इफिसियों 2:4-7

2. मनुष्य पापी है – मसीह ने लोगों के लिये क्या किया के अर्थ को समझने का एक भाग उन्हें यह बताना है कि वे पापी हैं। यदि मनुष्य खोया हुआ नहीं होता, तो उसे बचाने की कोई आवश्यकता नहीं थी। परन्तु उनके चेहरों को साफ करने की कोई आवश्यकता नहीं है – हम भी पापी हैं।1 पापी होने से हमारा अर्थ, हम यह नहीं कह रहे हैं कि मनुष्य का कोई मूल्य ही नहीं है या वह भले कार्यों को करने में असक्षम है। हम हमारे पापों के कारण परमेश्‍वर से सम्बन्ध विच्छेद रखते हैं, यह कोई अर्थ नहीं रखता कि वे क्या हैं: “क्योंकि पाप की मजदूरी मृत्यु है…।”2

3. मसीह ने उनके पापों के लिए अदायगी दी है – हम मसीह की मृत्यु के ऊपर जोर देते हैं? क्योंकि मसीह की मृत्यु के बिना पापों की कोई भी क्षमा नहीं है।3 परमेश्‍वर के प्रेम का सन्देश तब तक अधूरा है जब तक हम इसे परमेश्‍वर के न्याय के साथ नहीं जोड़ते हैं। मसीह ने हमारे पापों के दण्ड को अपने ऊपर ले लिया है।4 उसकी मृत्यु का केवल यही प्रदर्शन नहीं था कि वह हम से कितना प्रेम करता है; यह परमेश्‍वर के न्याय की अदायगी को भी सन्तुष्ट करना था। उसने अपने शिष्यों से कहा, “क्योंकि मनुष्य का पुत्र इसलिये नहीं आया कि उसकी सेवा टहल की जाए, पर इसलिये आया कि आप सेवा टहल करे, और बहुतों की छुड़ौती के लिये अपने प्राण दे”5

4. मसीह परमेश्‍वर है – मनुष्य के पाप की अदायगी करने के लिए, मसीह को दोनों अर्थात् परमेश्‍वर और मनुष्य होना था।6 यदि मसीह मनुष्यरहित होते हुए परमेश्‍वर होता, तो परमेश्‍वर हमारी मानवता के साथ अपनी पहचान नहीं कर सकता था; यदि परमेश्‍वररहित होते हुए केवल मनुष्य होता, तो वह सारी मानवजाति के पापों के दण्ड की अदायगी नहीं कर सकता था। मसीह, अर्थात् परमेश्‍वर-मनुष्य ने हमारे पापों को अपने ऊपर ले लिया। परिणामस्वरूप, वही केवल परमेश्‍वर के पास जाने का एक मार्ग है:“मार्ग और सत्य और जीवन मैं ही हूँ; बिना मेरे द्वारा कोई पिता के पास नहीं पहुँच सकता है”7

5. मसीह मृतकों में जी उठा था– सुसमाचार का एक अतिरिक्त तत्व भी है: मसीह, जो हमारे बदले में मर गया, वह जीवित है । मसीह के जी उठने के कारण, हम खाली कब्र का उत्सव मनाते हैं। पुनरूत्थान के बिना, हमारा विश्‍वास अर्थहीन होगा।8 एक बार पुन: हम यीशु की श्रेष्ठता को देखते हैं। उसने न केवल परमेश्‍वर होने का दावा, अपितु उसने जी उठने का उपयोग अपने ईश्‍वरत्व और मृत्यु के ऊपर अपनी सामर्थ्य को दिखाने के लिए किया।9 हमारा मोहम्मद, कन्फ्यूसियश या बुद्धा के साथ व्यक्तिगत् सम्बन्ध नहीं हो सकता है – वे सभी मर गए। परन्तु यीशु आज भी जीवित है, और हम उसे जान सकते हैं।

6. अनन्त जीवन को पाने के लिए हमें विश्‍वास के द्वारा प्रतिउत्तर देना चाहिए - उद्धार में, मैं जानता हुँ कि यीशु परमेश्‍वर है, यह कि मैं पापी हूँ, यह कि वह मेरे पापों के दण्ड की अदायगी के लिए मर गया, और तब मैं उसके द्वारा मेरे पापों के लिए अदा किए गए जुर्माने को स्वीकार करता हूँ। यही कुछ को बाइबल मसीह में “विश्‍वास में” करना या उसे “ग्रहण करना” कह कर पुकारती है।10 मैं अनन्त जीवन के उपहार को ग्रहण कर रहा हूँ, जिसे मैंने कमाया नहीं है और जिसके योग्य भी नहीं हूँ, उस परमेश्‍वर से जो हमारी सृष्टि करता और हमें प्रेम करना चुनना है चाहे इसके लिए उसे अपने पुत्र के द्वारा कीमत ही क्यों न चुकानी पड़ी।11

कैसे संसार को महानत्तम सन्देश बाँटा जाए

प्रमाणिक रहिए–सहज और ईमानदार रहिए। हो सकता है कि आप कुछ इस तरह की बातें कहने की कोशिश कर रहे हों, “आप जानते हैं, मसीह वास्तव में मेरे लिए महत्वपूर्ण हो गया है और मैं उसके बारे में बात करना चाहता हूँ।” व्याख्या करें कि परमेश्‍वर ने आपके जीवन में क्या किया है, परन्तु सिद्ध बने रहने जैसे प्रयास को न करें। विश्‍वासी खेलों को पसन्द करते हैं, अपने बिलों को देने से घृणा करते हैं और असमान अघातों से, ठीक किसी भी अन्य व्यक्ति के जैसे मुलाकात करते हैं।

प्रमाणिकता का अर्थ यह भी है कि आपका सन्देश आपके जीवन की पुष्टि करता है। लोग केवल सुनने वालों से थक गए हैं। प्रेरित पौलुस ने थिस्सलुनीकियों से कहा कि उन्होंने न केवल सन्देश को सुना अपितु उन्होंने इसके आगे यह भी देखा कि कैसे उसका जीवन उसके सत्य के सन्देश के प्रमाण के अनुरूप है।12 उसके जीवन के सन्देश ने उसके मुँह के सन्देश का विरोध नहीं किया।

यद्यपि अपने जीवन के द्वारा अपनी गवाही की पुष्टि करना आपकी मौखिक गवाही का स्थान नहीं ले लेता है। तथापि दोनों की आवश्यकता है। आप मसीही जीवन को बस ऐसे ही नहीं जी सकते और यह आशा नहीं कर सकते हैं कि अन्य इस पर ध्यान देंगे; हो सकता है कि आपका जीवन एक अच्छा जीवन होगा परन्तु वह नहीं जानते होंगे कि यह क्यों है। यीशु ने एक सिद्ध जीवन को यापन किया और वह निरन्तर सुसमाचार की घोषणा कर रहा था। यीशु का आदेश शब्द और कार्य द्वारा गवाही देना है।

पवित्रात्मा पर परिणाम को छोड़ दें– “सफल गवाही पवित्रात्मा की सामर्थ्य में मसीह को बाँटने का आरम्भ और परिणाम परमेश्‍वर पर छोड़ देना है।”13 गवाही देने के समय पवित्रात्मा की सामर्थ्य के ऊपर निर्भर होने का अर्थ यह विश्‍वास करना है कि वह आपके वार्तालाप की अगुवाई उस समय करेगा जब आप अपनी बुद्धि और मौखिक योग्यताओं को अन्यों के साथ सुसमाचार बाँटने में उपयोग करते हैं। परिणाम परमेश्‍वर के ऊपर है। इस उलझन में मत पड़ जाइए कि यह किसका कार्य है कि लोग बच जाएँ! लोगों का बचाया जाना परमेश्‍वर का दायित्व है; आपका दायित्व सुसमाचार को प्रस्तुत करना है।

एक श्रोता बनिए– अपने विश्‍वास को बाँटने में प्रश्न और सुनना सम्मिलित होता है। यह एक वार्तालाप है। आप जानना चाहेंगे कि लोग सोचते हुए क्या बात कर रहे हैं। इसलिए आप कह सकते हैं कि, “आप क्या सोचते हैं कि कैसे एक व्यक्ति मसीही विश्‍वासी बन जाता है?” या “स्वर्ग जाने के लिए क्या किया जाता है?”

उनके साथ बने रहिए– प्रमाणिक बने रहना और सुनने के लिए सीखना आपकी गवाही में वृद्धि करेगा यदि आप इसके साथ एक और महत्वपूर्ण गुण को जोड़ दें: जिन लोगों को आप सुसमाचार सुनाते हैं उनके साथ बने रहने का समर्पण। इसमें कोई सन्देह नहीं है कि ऐसे समय आएंगे जब आपके पास किसी अन्जान व्यक्ति के लिए कुछ ही मिनट होंगे, जैसे कि हवाई जहाज में या राशन खरीदने वाली दुकान पर। परन्तु अधिकांश गवाहियाँ सम्बन्धों के संदर्भ में ही दी जाती हैं।

अपने उपयोग के लिए परमेश्‍वर से अपेक्षा करें - आपके संसार के बहुत से लोग मसीह के बारे में आपके कारण सुन सकते! जब आप मसीह में अपने विश्‍वास का सम्प्रेषण अन्यों के साथ करते हैं, तो इस बात पर आश्चर्यचकित न हों कि कैसे परमेश्‍वर आपको उपयोग करने के लिए योग्य हुआ!

सुसमाचार के एक स्पष्ट प्रस्तुतीकरण के लिए जिसे आप अन्यों के साथ बाँट सकते हैं यहाँ पर क्लिक करें।

फुटनोट: (1) रोमियों 3:23 (2) रोमियों 6:23 (3) इब्रानियों 7:27; 1पतरस 2:24 (4) 2 तीमुथियुस 1:15 (5) मरकुस 10:45 (6) 2 कुरिन्थियों 5:19; कुलुस्सियों 1:19, 20; 2:9 (7) यूहन्ना 14:6 (8) 1 कुरिन्थियों 15:13, 14, 17 (9) यूहन्ना 11:25; 1 कुरिन्थियों 15:55, 56 (10) यूहन्ना 1:12 (11) इफिसियों 2:8, 9; तीतुस 3:5 (12) 1 थिस्सलुनीकियों 1:5; 2:8 (13) एक कथन जिसे अकसर बिल ब्राइट, अन्तराष्ट्रीय कैंपस क्रूसेड फॉर क्राईस्ट के संस्थापक कहा करते थे।

यह लेख स्टीवन एल. पोग्यू के द्वारा रचित पुस्तक, आपके मसीह जीवन का प्रथम वर्ष में लिया हुआ अंश है।